लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (5)ऊँट के मुँह में जीरा ( मुहावरों की दुनिया )
शीर्षक = ऊँट के मुँह में जीरा
वो दिन तो दीन दयाल जी का अपने पुराने जख्मो को ही याद कर कुरेदने में ही निकल गया, कब शाम और फिर कब रात हो गयी उन्हें पता ही नही चला, मानव भी नही आया या फिर आया होगा तो अपने दादा को देख चला गया होगा
राधिका भी, आशीष के साथ फ़ोन पर बाते करते करते कब नींद की आगोश में चली गयी उसे पता ही नही चला और मानव तो बहुत पहले ही सो चूका था, दिन भर शैतानी भी तो बहुत की थी
अगला दिन, नया दिन नयी शुरुआत , राधिका अपनी सास का हाथ बटाने रसोई में चली गयी थी, मानव अभी सो रहा था और दीन दयाल जी खेत का चककर मारने गए थे, की कही जानवरों ने उसकी फसल को कुछ नुकसान तो नही पंहुचा दिया
थोड़ी देर बाद मानव भी नहा धोकर तैयार हो जाता है और दीन दयाल जी भी खेत से वापस आ जाते है, आज़ उन्हें अपने पोते को गांव घुमाना था, गांव के लोगो से मिलाना था, अभी तक सिर्फ मानव ने थोड़ा बहुत ही गांव देखा था
दोनों दादा पोते निकल पड़ते है, गांव की सेर पर, उसके दादा रास्ते में मिलने वाले लोगो के बारे में उसे बताते की वो कौन है और क्या काम करते है,
इसी के साथ वो एक जगह भी जाते है, जहाँ मानव ने देख बहुत सारे मजदूर काम कर रहे थे, और बाहर दरख़्त की छाँव में पड़ी कुर्सी पर एक आदमी कुछ लेखा झोका लिए बैठा है
उसके दादा उसके पास जाते है, तब ही वो आदमी उसके इस्तक़बाल के लिए खड़ा हो जाता है और कहता है " आइये, आइये दीन दयाल जी, आज़ कैसे इधर आना हुआ, लगता है ये आपका पोता है "
"जी मुनीम जी सही पहचाना, और काम केसा जा रहा है, सब अच्छे से तो हो रहा है " दीन दयाल जी ने पूछा
"हाँ, भगवान की किरपा है, सुबह आ जाते है, दिन भर बही खाते देखते है और शाम को घर चले जाते है, महीना होते ही तनख्वाह मिल जाती है, लेकिन नाम की ही तनख्वाह है बस इंतज़ार ही रहता है, हाथ में आती है तो पता नहीं चलता है कहा उड़ गयी, इतने बड़े परिवार का पेट पालने के लिए तो वो तनख्वाह बिलकुल ऊँट के मुँह में ज़ीरे की तरह है,आधा अधूरा ही राशन आ पाता है, और महीने के आखिरी दिनों में तो भूखा ही सोना पड़ता है
मालिक को कई बार कहा है, की कुछ तनख्वाह बड़ा दे ताकि अच्छे से गुज़ारा हो सके, लेकिन वो सुनते ही नहीं है,बातों में टाल देते है " मुनीम जी ने कहा
"कोई नहीं मुनीम जी ईश्वर पर भरोसा रखिये, सब ठीक हो जाएगा, देखना आज़ नहीं तो कल आपको आपकी ईमानदारी और मेहनत का सिला अवश्य मिलेगा, बनिया आपके पैसे बड़ा देगा, कौन सा उसे सारी धन दौलत अपने साथ लेकर जाना है " दीन दयाल जी ने कहा
"हाँ, बस ईश्वर पर ही भरोसा है, वो ही है हम सब की लाज रखने वाला, ईश्वर करे मालिक के दिल में थोड़ी दया आ जाए और वो हम सब की तनख्वाह बड़ा दे वरना इस बढ़ती महंगाई के चलते तो जो तनख्वाह मिल रही है, वो तो ऊँट के मुँह में जीरा समान है " मुनीम जी ने कहा
"ऐसा ही होगा, ईश्वर पर भरोसा रखिये, अच्छा अब मैं चलता हूँ, पोते को और जगह भी दिखानी है " दीन दयाल जी ने कहा
"ठीक है, आते रहा कीजिये, आपसे मिलकर अच्छा लागत है "मुनीम जी ना कहा
ठीक है, फिर आऊंगा, दीन दयाल जी ने कहा और वहाँ से जाने लगे
मानव जो की कुछ सोच विचार में था, और दादा से बोला " दादा जी! ये ऊँट के मुँह में जीरे का क्या मतलब होता है, ये मुहावरा तो उस पर्चे में भी लिखा हुआ है, जो हमारी अध्यापिका जी ने दिया था "
अच्छा, ये मुहावरा भी तुम्हारे उस पर्चे में लिखा हुआ है, तो चले बताते है इसके बारे में
बेटा ऊँट के मुँह में जीरा कहावत का तात्पर्य इस बात से है, की किसी मनुष्य को उसकी क्षमता के हिसाब से कुछ कम चीज मिलना
जैसा की मुनीम जी ने कहा, की उनकी तनख्वाह ऊँट के मुँह में जीरे के समान है, क्यूंकि उनका एक बड़ा परिवार है, जिसकी सारी ज़िम्मेदारियां उन्ही के कांधो पर है, जिसके चलते जो पैसा वो कमाते है, उनके और उनके परिवार वालों के लिए पर्याप्त नहीं है, और उनका मालिक यानी बनिया बहुत ही कंजूस है वो सब को इतनी कम तनख्वाह देता है जो की उन सब के लिए ऊँट के मुँह में जीरा समान है,
मुझे उम्मीद है, इस तरह तुम्हे समझ आ गया होगा, और अब तुम इसे अपने लफ्ज़ो में कहानी बनाने में कामयाब हो जाओगे " दीन दयाल जी ने कहा
"जी दादा जी, मेरी समझ में आ गया, मैं रात को इसे अपनी कहानियों की किताब में लिख लूँगा," मानव ने कहा
"ठीक है बेटा, चलो अब थोड़ा घर पर चलते है, दोपहर होने आयी है, बाकी का गांव कल घूमेंगे, तुम्हारी दादी ने खाना बना लिया होगा " दीन दयाल जी ने कहा और वहाँ से अपने घर की और चल पड़े
मुहावरों की दुनिया हेतु
Mahendra Bhatt
13-Jan-2023 10:07 AM
बेहतरीन
Reply
Gunjan Kamal
13-Jan-2023 09:51 AM
शानदार
Reply
Ekta Singh
12-Jan-2023 04:55 PM
Supub
Reply